गोरखपुर। गाजी रौजा स्थित आइडियल मैरेज हाउस में शानदार जलसा-ए-ईद मिलादुन्नबी हुआ। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से जलसे का आगाज हुआ। नात-ए-पाक पेश की गई।
अध्यक्षता करते हुए बिलग्राम शरीफ के सज्जादानशीन पीरे तरीक़त अल्लामा सैयद उवैस मुस्तफा वास्ती ने कहा कि मुसलमानों को अल्लाह की तरफ से जो भी सौग़ात मिली है, वह पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदके में ही मिली है। पैग़ंबर-ए-आज़म अल्लाह का नूर व आख़िरी पैग़ंबर हैं। पैग़ंबर-ए-आज़म को अल्लाह ने अपने नूर से पैदा फरमाया और पैग़ंबर-ए-आज़म के नूर से कायनात को बनाया। पैग़ंबर-ए-आज़म पर इंसान, जिन्न, फरिश्ते दरूदो-सलाम भेजते हैं। मुसलमानों के लिए रबीउल अव्वल शरीफ का महीना बहुत अहम है। इस महीने की 12 तारीख़ पैग़ंबर-ए-आज़म की पैदाइश का दिन है।
आइडियल मैरेज हाउस में हुआ शानदार जलसा-ए-ईद मिलादुन्नबी
मुख्य वक्ता अल जामितुल अशरफिया मुबारकपुर के मौलाना मसऊद अहमद मिस्बाही ने कहा कि जब-जब दुनिया में बुराईयां बढ़ती है तब-तब अल्लाह इंसानों की रहनुमाई के लिए नबी व रसूल (पैग़ंबर) भेजता है। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसे जमाने में जन्म लिया, जब अरब के हालात बहुत खराब थे। बच्चियों को ज़िन्दा दफ़्न कर दिया जाता था। विधवाओं से बुरा सुलूक होता था। छोटी-छोटी बात पर तलवारें खिंच जाती जाती थीं। इंसानियत शर्मसार हो रही थी। ऐसे समय में इंसानों की रहनुमाई के लिए अरब के मक्का शहर में पैग़ंबर-ए-आज़म का जन्म हुआ। पैग़ंबर-ए-आज़म ने जब सच्ची तालीमात आम करनी शुरु कि तो उस दौर के मक्का में रहने वालों को काफी बुरा लगा। आपको तरह-तरह की तकलीफें दी गईं। जिसका आपने डट कर सामना किया। आपको मक्का से हिजरत करने पर मजबूर किया गया। आपने मदीना शरीफ में ठहराव पसंद किया। इतनी परेशानियों के बाद आपने मिशन को नहीं छोड़ा। आपने मजलूमों, गुलामों, औरतों, बेसहारा, यतीमों को उनका हक दिलाया।
अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमन सलामती की दुआ मांगी गई। जलसे में हाफिज अयाज अहमद, हाजी उबैद अहमद खान, अब्दुल मतीन फैजी, नासिफ अहमद, शादाब अहमद, मुफ़्ती अख़्तर हुसैन, कारी फुरकान अहमद,मौलाना मकसूद आलम, कारी नसीमुल्लाह, मोहम्मद आज़म, हाफिज रहमत अली निजामी आदि मौजूद रहे।