
गोरखपुर। ग्यारहवीं शरीफ पर सूर्य विहार कॉलोनी तकिया कवलदह में रविवार को जलसा-ए-ग़ौसुलवरा हुआ। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हाफिज मो. आरिफ ने की। नात व मनकबत कैसर आजमी ने पेश की। गौसे आज़म हज़रत शैख अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां की हयात व खिदमात पर मुकम्मल रोशनी डाली गई। संचालन हाफिज रहमत अली निज़ामी ने किया।
अध्यक्षता करते हुए मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि अल्लाह के वलियों में सबसे ऊंचा मर्तबा हज़रत सैयदना शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी का है। हमारे औलिया किराम जिस रास्ते से गुजरे उन रास्तों में तौहीद व सुन्नते रसूल का नूर व खुशबू फैल गई। हिन्दुस्तान में ईमान व दीन-ए-इस्लाम इन्हीं बुजुर्गों, औलिया व सूफिया के जरिए आया। ऐसे लोग जिनके चेहरों को देखकर और उनसे मुलाकात करके लोग ईमान लाने पर मजबूूर हो जाते थे। हमें भी इनकी तालीमात पर पूरी तरह से अमल करना चाहिए।
तकिया कवलदह में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा
मुख्य वक्ता नायब काजी मुफ़्ती मो. अज़हर शम्सी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम में ज़िन्दगी के लिए एक मुकम्मल निज़ाम है। दीन-ए-इस्लाम पर अमल करना दोनों जहाँ की कामयाबी के लिए ज़रूरी है। दीन-ए-इस्लाम की एक ख़ूबी यह भी है कि इस्लाम ने ईमानियात, इबादात, मुआमलात और मुआशरत में पूरी ज़िन्दगी के लिए इस तरह रहनुमाई की है कि हर शख़्स चौबीस घंटे की ज़िन्दगी का एक-एक लम्हा अल्लाह की तालीमात के मुताबिक अपने रसूल-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तरीक़े पर गुज़ार सके।
विशिष्ट वक्ता कारी मो. अनस रज़वी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम गरीबों, मिसकीनों और ज़रूरतमंदो का पूरा ख़याल रखता है, चुनांचे मालदारों पर ज़कात व सदक़ात को वाजिब करने के साथ यतीम और बेवाओं की किफ़ालत करने की बार-बार तालीम दी गई। इस्लाम ने ज़कात का ऐसा निज़ाम क़ायम किया है कि दौलत चंद घरों में सिमट कर न रह जाए। ग़रीब लोगों के ग़म में शरीक होने के लिये रोज़े फ़र्ज़ किए, ताकि भूक प्यास की सख़्ती का एहसास हो। दीन-ए-इस्लाम में खाने, पीने, सोने यहाँ तक कि इस्तिंजा करने का तरीक़ा भी बताया गया है। रास्ता चलने के आदाब भी बयान किए गए हैं। अल्लाह के हुक़ूम के साथ-साथ बन्दों के हुक़ूक़ की तफ़सीलात से आगाह करके उनको अदा करने की बार-बार ताकीद की गई है।
अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो शांति की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई। जलसे में माहताब आलम, सैयद नदीम अहमद, मुफ़्ती मेराज अहमद कादरी, अफ़ज़ल अहमद खान, सैयद हुसैन अहमद, सैयद मतीन अहमद, शमशाद आलम, सैयद मो. शहाबुद्दीन, शादाब आलम, इरफानुल हक अंसारी आदि ने शिरकत की।