गोरखपुर। बरकाती मकतब गोरखनाथ के शिक्षक हाफिज रज़ी अहमद बरकाती ने बताया कि हमें अपनी गलतियों को सुधारने का मौका रमज़ान के रोजे में मिलता है। गलतियों के लिए तौबा करने एवं अच्छाइयों के बदले बरकत पाने के लिए भी इस महीने की इबादत का महत्व है।
उन्होंने बताया कि दांतों से खून निकल कर हल्क से नीचे उतरा और खून थूक से ज्यादा या बराबर या कम था मगर इसका मजा हल्क में महसूस हुआ तो रोजा जाता रहा और अगर कम था और मजा भी हल्क में महसूस न हुआ तो रोजा न गया। आंसू मुंह में चला गया और आप उसे निगल गए, अगर कतरा दो कतरा है तो रोजा ना गया और ज्यादा था कि उसकी नमकीन पूरे मुंह में महसूस हुई तो जाता रहा। पसीना का भी यही हुक्म है। नाक के नथनों से दवाई चढ़ाई या कान में तेल डाला या तेल चला गया तो रोजा टूट जाएगा। जानबूझ कर मुंह भर उल्टी की और रोजादार होना याद है तो मुतलकन रोजा जाता रहा। कान में दवा डालने से रोजा टूट जाता है।