October 18, 2024
रमजानुल मुबारक का पाक महीना तमाम बरकतों के साथ उम्मते मुस्लिमा के लिए निजात का जरिया भी हैः एडवोकेट शोएब ख़ान सिमनानी

गोरखपुर। हिंदुस्तान उद्योग व्यापार मंडल के प्रदेश अध्यक्ष और दीनी मामलों के जानकार एडवोकेट शोएब ख़ान सिमनानी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि रमज़ान का पहला अशरा 2 अप्रैल को मगरिब से पहले पूरा हो गया, वहीं मगरिब की अजान के साथ ही दूसरे अशरे की शुरुआत हो गई, दरअसल, रमजान के 30 दिनों का महीना 10-10 दिन के तीन हिस्सों में बंटा होता है. 10 दिन का एक हिस्सा एक अशरा कहलाता है।

रमजान
रोजा रखकर परवरदिगार की इबादतों का सिलसिला अब और भी तेज होगा. तिलावत-ए-कलामपाक और शबीना का दौर भी चलेगा. रविवार को मगरिब की अजान होते है रमजान का पहला अशरा मुकम्मल होगा और दूसरा अशरा शुरू हो जाएगा. पहला अशरा रहमत का कहलाता है. दूसरा अशरा मगफ़िरत का और रमज़ान का तीसरा अशरा जहन्नम से आजादी का है. दूसरे अशरे में दिल से की गई तौबा कबूल होती है।
एडवोकेट शोएब खान सिमनानी ने बताया कि रमज़ान का पूरा महीना 10-10 दिन के तीन हिस्सों में तक्सीम होता है. इस 10 दिन की अवधि का एक अशरा कहते हैं. पहला अशरा रहमत का है, जो 23 अप्रैल को चांद की तस्दीक के साथ शुरू हुआ था और 2 अप्रैल यानी रविवार को मगरिब के समय तक मुकम्मल होगा. वहीं रविवार 2 अप्रैल को मगरिब की अजान होते ही दूसरा अशरा शुरू हो जाएगा और 12 अप्रैल को मगरिब के समय तक मुकम्मल होगा. दूसरे अशरे में शबीना का दौर भी तेज हो जाता है.जहन्नम से आजादी का है तीसरा अशरारू रमजान का तीसरा और आखिरी अशरा 12 अप्रैल को मगरिब की अजान के साथ शुरू होगा. जहन्नम से आजादी का यह अशरा 29 रमजान या 30 रमजान को चांद की तस्दीक के साथ मुकम्मल होगा।

आखिरी अशरे में होगी शब-ए-कद्र की तलाशरूशब ए कद्र वह अजीम रात है, जिसमें इबादत करना एक हजार महीने से ज्यादा रब की इबादत करने के बराबर है. इसलिए आखिरी अशरे की ताक रातों यानी 21वीं रात, 23वीं रात, 25वीं रात, 27वीं रात और 29वीं रात में इबादतों के जरिए शब ए कद्र की तलाश करने का हुक्म है. रमजान 2023 सिर्फ रोजेदारों ही नहीं आम लोगों के लिए भी बहुत फायदेमंद है खजूर आखिरी अशरे में होगा। एतकाफ का एहतेमा रमजान के आखिरी अशरे में मस्जिदों में एतकाफ में बैठने का हुक्म है. तीसरा अशरा शुरू होने से पहले ही इबादत करने वाले मस्जिदों में दाखिल हो जाते हैं और पूरे 10 दिन पंचवक्ता नमाजों का एहतेमाम करने के साथ ही तिलावत में मशगूल रहते हैं। ईद के चांद की तस्दीक के बाद ही एतकाफ में बैठा इबादतगुजार मस्जिद से बाहर कदम निकालता है. उलमा-ए-कराम के मुताबिक अगर किसी गांव या मोहल्ले से एक भी बंदा एतकाफ में बैठता है तो पूरे गांव या मोहल्ले पर खुदा की रहमत नाजिल होती है।

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