
Case registered in MNREGA scam after 23 months but who is saving the secretary
सिसवा बाजार-महराजगंज। निचलौल विकास खण्ड के ग्राम पैकौली कला में मनरेगा घोटाले में 23 माह बाद तत्कालिन ग्राम प्रधान सहित तीन पर तो मुकदमा दर्ज कर लिया गया लेकिन ग्राम पंचायत सचिव पर अधिकारी क्यों मेहरबान है और उन्हे इस मामले में क्यों बचा लिया गया, यह बड़ा सवाल बन चुका है जब कि ऐसे घोटालों के मामले में ग्राम पंचायत सचिव पर भी गबन का मामला दर्ज होना चाहिए, वही सरकारी धन का गबन करने वाले खाता धारकों पर भी कोई कार्यवाही नही की गयी।
बताते चले निचलौल विकास खण्ड के ग्राम पैकौली कला में पिछले ग्राम प्रधान के कार्यकाल यानी सत्र 2019/20 व 2020/21 में ग्राम के ही रितेश पाण्डेय ने मनरेगा घोटाले का आरोप लगाते हुए अपने शिकायती पत्र में लिखा था कि मनरेगा योजना के तहत जाब कार्डधारक मजदूरी तो कर रहा है लेकिन बैंक खाता किसी और का दर्ज कर उनके खाते में पैसा भेजा जा रहा है, इस तरह मजदूरी कोई और कर रहा है और उसके मजदूरी का पैसा किसी और के खाते में जा रहा है।
रितेश पाण्डेय की शिकायत पर जांच में आरोप सही पाया गया और 7 अक्टूबर 2020 को खण्ड विकास अधिकारी निचलौल ने एक पत्र जारी किया जिसमें उन्होनें साफ लिखा कि सत्र 2019/20 व 2020/21 में कूटरचित तरीके से 265324 रूपये का दुरूपयोग/गबन पाया गया है, ऐसे में ग्राम प्रधान ,सचिवों, तकनीकी सहायकों से 33,33 प्रतिशत की वसूली धनराशी मनरेगा के खाते में एक सप्ताह के अन्दर जमा करें।
खण्ड विकास अधिकारी ने ग्राम प्रधान अरविन्द मिश्रा को जिसमें 88461 रूपये, तीन तकनीकी सहायकों को 29487-29487 रूपये व ग्राम पंचायत सचिवों देवेन्द्र कुमार यादव व धीरू यादव को 44231-44231 रूपये मनरेगा खाते में एक सप्ताह में जमा करने का आदेश दिया गया, इस आदेश के बाद सभी ने मनरेगा के खाते में पैसा जमा कर दिया।
यह पूरी तरह गबन का मामला है और यहां तो मनरेगा खाते में पैसा जमा करने के बाद ग्राम प्रधान, रोजगार सेवक व कम्प्यूटर आपरेटर पर मुकदमा दर्ज करने का आदेश जारी कर दिया गया और अधिकारियो ने सचिव को बचाने का काम करते हुए तहरीर से नाम ही गायब कर दिया।
मजे की बात तो यह है कि इस खेल को अंजाम देनें वालों में जहां सचिव को बचाया गया वही मामला दर्ज करने का आदेश सिर्फ कागजों में हुआ, इधर 23 माह गुजर जाने के बाद भी जब मामला दर्ज नही हुआ तो शिकायतकर्ता पिछले सप्ताह जिलाधिकारी को फिर शिकायती पत्र देकर कार्यवाही की मांग किया और जिलाधिकारी के हस्तक्षेप के बाद कोठीभार थाना में तत्कालीन ग्राम प्रधान, रोजगार सेवक व तत्कालीन कम्प्यूटर आपरेटर के विरूध धारा 409, 419 व 420 के तहत मामला दर्ज हुआ।
सचिव पर कौन है मेहरबान, अबतक कार्यवाही क्यों नही
ग्राम पैकौली कला मे मनरेगा घोटाला सामने आने के बाद सचिवों से घोटाले का 33,33 प्रतिशत हिस्सा वापस मनरेगा खाते में जमा तो करा लिया गया लेकिन उनके विरूध गबन का मामला क्यो नही दर्ज कराया गया जब कि ऐसे मामलों में कई गांव में सचिव पर भी गबन के मामले दर्ज हैं, यहां तो न ही गबन का मामला ही दर्ज कराया गया और न ही विभागीय कार्यवाही ही की गयी, ऐसे में सवाल तो उठता ही है कि आखिर सचिव को कौन और किस लिए बचा रहा है।
खाता धारक भी है दोषी
मनरेगा की मजदूरी कोई करता और खाता दूसरे का दर्ज किया गया, ऐसे में पैसा जिसके खाते मे भेजा जाता रहा और वह खाता धारक खाता से पैसा निकालता रहा तो दोषी तो वह खाता धारक भी है, क्यों कि गबन के इस खेत मे वह भी उतना ही हिस्सेदार है जितना इस खेल को अंजाम देने वाले है, ऐसे में उन खाता धारकों पर भी गबन का मामला बनता है लेकिन उन पर अबतक कोई कार्यवाही नही की गयी।