One such ward of Siswa where people locked their houses and went out in the early morning, know what is the matter
सिसवा बाजार-महराजगंज। एक ऐसी परम्परा जो सैकड़ों सालों से लोग मनाते चले आ रहे है, इस परम्परा को मनाने में कोई जाति का बंधन भी नही है, हिन्दू हो या फिर मुस्लिम सभी मिलजूल कर इस परम्परा को मनाते आ रहे है, इस परम्परा के मुताबिक हर तीन साल पर बुद्व पुर्णिमा के दिन तड़के सुबह घरों मे ताला लगा कर लोग बाहर हो जाते है और पूरा दिन घर के बाहर रहने के बाद शाम ढलने के बाद पूजा पाठ करने के बाद घर में प्रवेश करते है।
यह परम्परा सिसवा नगर पालिका परिषद के वार्ड नम्बर 11 राजाजीपुरम जो पहले ग्राम बेलवा चौधरी के नाम से जाना जाता था यहां पिछले सैकड़ों सालों से यह परम्परा जिसे परावन कहा जाता है मनायी जाती है, आज बुद्व पुर्णिमा के दिन सुर्य निकलने के साथ ही गांव के सभी लोग चाहे अमीर हो या फिर गरीब, हिन्दू हो या फिर मुस्लिम अपने-अपने घरों मे ताला डाल बाहर निकल जाते है, यहां तक कि अगर कोई दुल्हन भी आयी हो वह भी घर से बाहर निकल जाती है। परावन परम्परा के मुताबिक घरों से बाहर कुछ लोग कपड़ा डाल अपना डेरा बनाते हैं तो कुछ लोग बाग या फिर पास के स्कूलों में पहुंच कर इस परम्परा का निर्वहन करते है।
हर तीन साल पर बुद्व पुर्णिमा के दिन परावन परम्परा मनाया जाता है ऐसे मे आज सोमवार को बुद्व पुर्णिमा के दिन यह परम्परा यहां मनायी गयी, गांव के लोग घरों मे ताला डाला बाहर निकल गये, गांव में जब हमारी टीम पहुुंची तो गांव के अन्दर घरों में ताले लटके पड़े थे तो सड़कें पुरी तरह सूनी थी, कुछ लोग अपने घरों के बाहर तो कुछ लोग खेतों मे किसी पेड़ के नीचे तो कुछ बाग में तो कुछ स्कूलों में अपन-अपना डेरा बनाये हुए थे।
सैकड़ों साल से मनायी जाती है परावन
परावन की परम्परा सैकड़ों सालों से मनायी जाती है, जब हमने बेलवा के पूर्व ग्राम प्रधान व भाजपा नेता नागेन्द्र मल्ल से बात किया तो उन्होंने बताया कि यह परम्परा बहुत पुरानी है, सैकड़ों साल से यहां परावन मनाया जाता है, उन्होंने कहा कुछ बाबा यहां आया करते थे और गांव के लोगों से खाने की सामग्री के साथ लकड़ी मांगां करते थे एक साल यहां के लोगो ंने नही दिया तो वह मेह को उखाड़ कर जला दिये, जब गांव के लोगों ने विरोध किया तो उन्होंने कहा ठीक है इस गांव मे अब बिना मेह की निराइ होगी और हर तीन साल पर बुद्व पुर्णिमा के दिन घरों से बाहर हो जाए, ऐसे में यह परम्परा चली आ रही है।
वही उन्होंने यह भी कहा कि पहले प्लेग जैसी बिमारी चलती थी और गांव में तमाम मौंते होती थी हो सकता है उस वजह से लोग एक दिन के लिए पूरे गांव के लोग घरों से बाहर निकल गये हो और यह अब परम्परा के रूप में चली आ रही है।
हिन्दू-मुस्लिम एकता का मिशाल है यह परम्परा
यह परम्परा जो सैकड़ों सालो से चली आ रही है, यहां हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिशाल है, क्यो कि इस वार्ड मे हिन्दू और मुस्लिम दोनो रहते है और सैकड़ों सालो से चली आ रही परावन की परम्परा को एक साथ मिल कर मनाते है, चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम आज सभी अपने-अपने घरों मे ताला डाला घरों के बाहर डेरा पर रहे।