गोरखपुर। शुक्रवार को हज़रत सैयदना शेख अब्दुल कादिर जिलानी अलैहिर्रहमां (गौसे आज़म) का उर्स-ए-पाक ‘ग्यारहवीं शरीफ’ के रूप में अदब, अकीदत व एहतराम के साथ मनाया गया। मस्जिद, मदरसा, घर व दरगाहों में कुरआन ख्वानी, फातिहा ख्वानी व दुआ ख्वानी हुई।
जलसा-ए-ग़ौसुलवरा का आयोजन हुआ। सुबह फज्र की नमाज के बाद कुरआन ख्वानी व फातिहा ख्वानी का सिलसिला शुरू हुआ जो पूरे दिन चलता रहा। कई जगहों पर लंगर-ए-गौसिया बांटा गया। जुमा की तकरीर में उलमा किराम ने हज़रत शेखअब्दुल कादिर जिलानी की ज़िंदगी व ख़िदमात पर रोशनी डाली।
फैजाने गौसिया नौज़वान कमेटी की ओर से अहमदनगर चक्शा हुसैन नूरी मस्जिद से अकीदत के साथ जुलूस-ए-गौसिया निकाला गया। जो बाद नमाज जुमा जमुनहिया बाग, हुसैनाबाद, जाहिदाबाद, अंसारी रोड, हुमायूंपुर, शाहिदाबाद होता हुआ अहमदनगर चक्शा हुसैन में समाप्त हुआ। जुलूस में इस्लामी परचम, बगदाद शरीफ का नक्शा, घोड़ा आदि शामिल रहा। नात व मनकबत पढ़ते युवा आकर्षण का केंद्र रहे। कुल शरीफ की रस्म अदा की गई। शीरीनी बांटी गई। जुलूस में शादाब अहमद रज़वी, मुनाजिर हसन, कासिद रजा इस्माईली, शान, दानिश, नूरुद्दीन, रेहान, सादिक, हैदर, गोलू, इंजमाम, अरबाज, फैसल, सुफियान सहित तमाम अकीदतमंद मौजूद रहे।
मिर्जापुर चाफा में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा हुआ जिसमें उलमा किराम ने कहा कि अमन के लिए भाईचारा और एक को दूसरों के हक़ को पहचानना बहुत जरूरी है। दुनियाभर में मचा खूनखराबा सिर्फ मोहब्बत से रोका जा सकता है और इसका रास्ता कुरआन-ए-पाक व पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नतों पर अमल करने में है। इल्म के बिना किसी मसले की गहराई और उसका हल नहीं तलाशा जा सकता है। अगर हमें अपनी कौम को उन्नति के मार्ग पर ले जाना है तो इसके लिए जरूरी है कि नई नस्ल को पैग़ंबरे इस्लाम, सहाबा किराम, अहले बैत व औलिया किराम की पाक ज़िंदगी से अवगत कराया जाए। अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। लंगर बांटा गया।
जलसे में मो. सुलेमान अली, रियासुद्दीन अहमद, रियाजुद्दीन अहमद, रमजान अली, मुर्तजा अली, मनौव्वर अली, सरवर अली, सलमान अशरफी, कारी मसीयुद्दीन, शमसुद्दीन, महफूज, सदरुद्दीन, मकसूद अरशद, तैयब अली, अब्दुल वाहिद, शमशेर अली, मो. असलम, ताहिर अली, अकरम अली, अनवर अली आदि मौजूद रहे।
दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद नार्मल पर फैजाने अहले बैत ट्रस्ट ने मदरसा छात्रों व अकीदतमंदों में फल बांटा। मजार पर चादर पेश की। फातिहा ख्वानी की। अल्लाह से दुआ मांगी। इस दौरान हाशिम वारसी, कासिम वारसी, सैयद आसिम अशरफी, शालू वारसी, सलीम अत्तारी, अशहर, अरशद, गोलू, इमरान, निजामुद्दीन आदि मौजूद रहे।
मौलवी चक बड़गो में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा हुआ। जिसमें मुफ्ती मेराज अहमद कादरी ने कहा कि मुसलमानों को हज़रत शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी अलैहिर्रहमां के नक्शेकदम पर चलना चाहिए। मुसलमान नमाज, रोजा, हज, जकात के साथ मां-बाप, भाई-बहन, रिश्तेदारों, पड़ोसियों और आम इंसानों का हक़ अदा करें। किसी का दिल न दुखाएं। अल्लाह के महबूब पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, सहाबा किराम, अहले बैत व औलिया किराम ने पूरी दुनिया को तौहीद, कुरआन-ए-पाक व हदीस-ए-पाक की तालीमात पर अमल करते हुए इंसानियत, अमन व शांति की शिक्षा दी।
नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में महफिल-ए-ग़ौसुलवरा हुई। मौलाना मो. असलम रज़वी ने कहा कि दुनिया में जो बेअमनी है वह सिर्फ इस बुनियाद पर है कि हमने पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, सहाबा किराम, अहले बैत व औलिया किराम का बताया हुआ रास्ता छोड़ दिया है। हम दुनिया में अमन चाहते हैं तो पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, सहाबा किराम, अहले बैत व औलिया किराम का बताया हुआ रास्ता अपनाना होगा। कुल शरीफ की रस्म अदा कर दुआ मांगी गई। लंगर बांटा गया। महफिल में शाबान अहमद, अलाउद्दीन निज़ामी, मनोव्वर अहमद आदि मौजूद रहे। दारोगा मस्जिद अफगानहाता में भी लंगर बांटा गया।