December 2, 2024
ग़ौसे आजम कांफ्रेंस: धर्मगुरु बोले मुस्लिम समाज को हक़ हुक़ूक़ के लिए जागरूक होना पड़ेगा

गोरखपुर। नबी-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सामाजिक परिवर्तन का एक ऐसा इंकलाब लाया जिससे समाज को जीवन व्यतीत करने का सलीका मिल गया। दुनिया ने बड़े-बड़े इंकलाब देखे हैं जिससे बादशाहत बदलती है लेकिन नबी-ए-पाक ने जो इंकलाब लाया उससे सिर्फ बादशाहत व सल्तनत ही नहीं बदली बल्कि समाज का मिजाज बदला। सभ्यता एवं संस्कृति के साथ जीवन जीने का मकसद बदला। यही कारण है कि आज भी नबी-ए-पाक के उपदेशों को सार्थक मानते हुए पूरा विश्व उन्हें अपना पेशवा, रहबर, सरदार, रहनुमा व आदर्श मानता है।

ग़ौसे आजम कांफ्रेंस: धर्मगुरु बोले मुस्लिम समाज को हक़ हुक़ूक़ के लिए जागरूक होना पड़ेगा

यह बातें बतौर मुख्य अतिथि मध्य प्रदेश के मुफ्ती गुलाम जीलानी अजहरी ने शहीद अब्दुल्लाह नगर गोरखनाथ में आयोजित गौसे आजम कांफ्रेंस के दौरान कही, उन्होंने कहा कि नबी-ए-पाक के उपदेशों को पढ़ें, जानें, समझें और उसका अनुसरण करने की कोशिश करें। इससे आपकी दीन एवं दुनिया दोनों संवर जाएगी। इस्लाम का असली मिशन अमन व शांति है। नबी-ए-पाक के बताए रास्ते पर चलकर ही मुल्क, कौम और समाज को खुशहाल बनाया जा सकता है।

ग़ौसे आजम कांफ्रेंस: धर्मगुरु बोले मुस्लिम समाज को हक़ हुक़ूक़ के लिए जागरूक होना पड़ेगा

विशिष्ट अतिथि मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि क़ुरआन-ए-पाक में इल्म और आलिम (ज्ञान और ज्ञानी) को अत्यधिक महत्व दिया गया है क्योंकि यह इल्म ही है जो इंसान को अज्ञानता के अंधकार से बाहर निकालता है और मानवता का पराकाष्ठता की ओर मार्गदर्शन करता है। मुस्लिम समाज को हक़ हुक़ूक़ के लिए जागरूक होना पड़ेगा। तालीम के क्षेत्र में आगे बढ़ना होगा। जब तक हम खुद नहीं बदलेंगे तब तक हमारे हालात नहीं बदलने वाले।

विशिष्ट अतिथि मौलाना मो. हारून मिस्बाही ने कहा जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं जिसे बेहतर बनाने, अच्छाई को स्वीकार करने के लिए नबी-ए-पाक हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कोई संदेश न दिया हो। कायनात का जर्रा-जर्रा नबी-ए-पाक को आखिरी नबी मानता है। नबी-ए-पाक की बातें इंसानों को सच की राह दिखाती हैं।

उलमा किराम ने हज़रत शैख अब्दुल कादिर जीलानी अलैहिर्रहमां की ज़िंदगी के हर पहलू पर प्रकाश डाला। कुरआन की तिलावत कारी नसीमुल्लाह ने की। नात आजमगढ़ के एहसान शाकिर व अफरोज आलम ने पेश की। अंत में सलातो-सलाम पढ़कर अमनो-अमान की दुआ मांगी गयी। अकीदतमंदों को लंगर-ए-गौसिया खिलाया गया।
कांफ्रेंस में मोहम्मद बारकल्लाह खान अशरफी, मुफ्ती अख्तर हुसैन, मौलाना नूरुज्जमा मिस्बाही, नजरे आलम, बदरे आलम, नजरुल हसन, सज्जाद हैदर, अजीम अहमद आदि ने शिरकत की।

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